परेल स्थित ग्लेनईगल्स अस्पताल में 15 वर्षीय मरीज अनामता अहमद के कंधे स्तर की कुल बांह प्रत्यारोपण सफलतापूर्वक किया गया है। बांह प्रत्यारोपण सर्जरी करने वाली यह सबसे कम उम्र की मरीज हैं।
परेल स्थित ग्लेनईगल्स अस्पताल के प्लॉस्टिक, हाथ और रिकंस्ट्रक्टिव मायक्रोसर्जरी के प्रमुख डॉ. नीलेश जी. सतभाई के नेतृत्व में अन्य एक डॉक्टर की टीम ने यह सर्जरी की है। परेल स्थित ग्लेनईगल्स अस्पताल के प्लॉस्टिक, हाथ और रिकंस्ट्रक्टिव मायक्रोसर्जरी के प्रमुख डॉ. नीलेश जी. सतभाई ने कहा कि हाथ दान करना अभी भी दुर्लभ है क्योंकि परिवार अक्सर हाथ दान करने से हिचकिचाते हैं, लेकिन जागरूकता बढ़ रही है। अनमता की चोट जटिल थी और उसने कंधे के स्तर पर अपना दाहिना ऊपरी अंग खो दिया था। उसकी प्रत्यारोपण सर्जरी बेहद चुनौतीपूर्ण थी। सर्जरी में हमें लगभग 12 घंटे लगे। सर्जरी के बाद अब उसकी सेहत में सुधार हो रहा है। हालाँकि उसे आजीवन इम्यूनोसप्रेसेन्ट और संबंधित देखभाल की आवश्यकता होगी।”
मुंबई के गोरेगाव में रहनेवाली 15 वर्षीय अनमता अहमद छुट्टियों में उत्तर प्रदेश के अलीगढ में अपने गावं गई थी। अपने चचेरे भाइयों के साथ खेलते समय उसने गलती से छत पर 11 केवी तार को छू लिया। इससे उन्हे बिजली का तेज झटका लगा और वह काफी जल गई। उसके दाहिने हाथ में गैंग्रीन हो गया और उसका हाथ तीन बार काटना पड़ा। उसका बायाँ हाथ भी गंभीर रूप से घायल हो गया था, जिसमें बड़े घाव थे और वह ठीक नहीं हो रहा था। उसके माता-पिता ने देश के कई अस्पतालों और कुछ अंतरराष्ट्रीय अस्पतालों में इस समस्या का समाधान खोजने की बहुत कोशिश की। वे जहां भी गए, उन्हें हर जगह से मना कर दिया गया। अंत में, वह ग्लेनईगल्स अस्पताल के डॉ. नीलेश सतभाई से मिले, जिन्होंने इस कठिन प्रत्यारोपण सर्जरी की चुनौती स्वीकार की। वह हाथ प्रत्यारोपण के लिए पंजीकृत थी और उसे उपयुक्त दाता मिलने में एक वर्ष से अधिक समय तक इंतजार करना पड़ा। एक महीने पहले अनमता ने अपने हाथ प्रत्यारोपण की सर्जरी करवाई और कंधे के स्तर पर सफल हाथ प्रत्यारोपण प्राप्त करने वाली विश्व स्तर पर सबसे कम उम्र की मरीज बनी हैं। अनमता कंधे के स्तर पर प्रत्यारोपण करवाने वाली दुनिया की पहली महिला भी हैं। अनमता को सूरत के एक 9 वर्षीय ब्रेन-डेड डोनर से हाथ मिला, जो आज तक देश का सबसे कम उम्र का हाथ दाता है।
मरीज अनमता अहमद ने कहा , “यह पल एक सपने के सच होने जैसा लगता है। हाथ न होने के कारण में काफी चिंतित थी। बिजली के झटके ने मेरी पूरी जिंदगी बदल गई थी। लेकिन डॉ. नीलेश सतभाई और उनकी टीम के कारण मुझे नई जिंदगी मिली हैं। इस हाथ प्रत्यारोपण ने मेरी उम्मीद को फिर से जगा दिया है और मुझे जिंदगी जीने का दूसरा मौका मिला है। मुझे नई जिंदगी देने के लिए में डॉक्टर और उनकी टीम की आभारी हूं।”